संत दादूदयाल का जीवन परिचय ( Sant Dadu Dayal Biography in Hindi )

संत दादूदयाल का जीवन परिचय ( Sant Dadu Dayal Biography in Hindi )

संत दादू दयाल का जीवन परिचय (sant dadu dayal ji ke bare mein)

  • पंत – दादू पंत
  • उपनाम – राजस्थान का कबीर
  • प्रधान पीठ – नारायणा जयपुर
  • जन्म – अहमदाबाद
  • जन्मतिथि – 1544 ई.
  • पिता का नाम – लोदी राम ब्राम्हण
  • बचपन का नाम – महाबली
  • गुरु का नाम – ब्रमानंद

संत दादूदयाल अहमदाबाद से सांभर आए जहा उन्होंने धुनिया का कार्य किया।
आमेर जयपुर में दादूदयाल भगवत दास एवं मानसिंह के दरबारी कवि थे।
1885 ई. में संत दादूदयाल ने फतेपुर सीकरी आगरा में उन्होंने अकबर से मुलाकात की।

संत दादूदयाल ने पांच नियम प्रतिपादित किए। 

  1. विवाह नहीं करना
  2. नगर के बाहर रहना
  3. मृतकों को जंगल में जगली जानवरो के लिए खुला छोड़ देना।
  4. सत्यराम कहकर अभिवादन करना
  5. सिर मुड़ाकर रहना।

इन की मृत्यु 1603 ई. में नारायणा जयपुर में हुई थी इस लिए नारायणा जयपुर दादू की प्रमुख पीठ है।

दादू दयाल की मृत्यु के बाद इन की प्रधान पीठ पर संत नागरीदास बैठे थे।

दादूदयाल का शव भैरव पहाड़ी पर रखा गया , वर्तमान में उस स्थान को दादू खोल कहते है।

दादूदयाल के सत्संग स्थलों को अलख दरीबा कहा जाता है।
संत दादू के कुल 152 शिष्य थे। जिन में से 52 शिष्य प्रमुख थे जिन्हे 52 स्तंभ कहा जाता है।
संत दादूदयाल ने दादूरादोहा , दादूरी वाणी नामक 2 ग्रंथ ढुढाडी भाषा की पद्य शैली में लिखे।

दादू दयाल ने अपना पहला उपदेश सांभर जयपुर में दिया था।

दादू जी से संबंधित प्रमुख पांच स्थान

  • आमेर
  • सांभर
  • नारायणा
  • कल्याणपुर
  • भेराणा

संत दादूदयाल के प्रमुख शिष्य

  • संत रज्जब जी
  • संत सुंदरदास जी।

दादू दयाल जी के बारे में उनके जन्म के बारे में कहा जाता है। कि भारत के गुजरात राज्य के अहमदाबाद नगर में हुआ था। दादू दयाल मध्यकालीन भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत थे दादू दयाल गुजरात भारत के एक कवि संत को धार्मिक सुधारक थे। जिन्होंने औपचारिकता और पुरोहित वाद के खिलाफ बात की थी दादू का अर्थ होता है भाई और दयाल का अर्थ होता है दयालू अहमदाबाद के एक धनी व्यापारी में दादू जी को साबरमती नदी पर तैरते हुए पाया था। कहा जाता है कि लोधी राम नामक ब्राह्मण को बच्चों की कामना थी और एक साधु ने उनको बोला था तुम्हें साबरमती नदी में कमल पर लेटा हुआ एक पुत्र मिलेगा। कहा जाता है उनके दो पुत्र थे जिनका नाम गरीबदास और मिक्किम दास था और इन्हीं पुत्रों ने उनके दादू पंथ की गद्दी समाली थी।

दादू ने 20 हजार पद और साखी की की रचना की जिम हृदय वाणी और अंगबदो आदि शामिल है इनके 12 पद शिष्य थे। दादू हिंदी गुजराती राजस्थानी भाषा आदि के ज्ञाता थे। वह हिंदी मुसलमान एकता पर जात पात के मुद्दों पर बात करते थे। दादू दयाल के माता-पिता कौन थे और उनकी जाति क्या थी इस विषय पर भी विद्वानों में मतभेद है। एक किवदंती के अनुसार कबीर की भांति दादू भी किसी कुंवारी ब्रह्माणी की अवैध संतान थे। जिस ने बदनामी के डर से दादू को साबरमती नदी में प्रभावित कर दिया बाद में इन का लालन पालन लोधिराम नामक नागर ब्राह्मण ने किया आचार्य पर परशुराम चतुर्वेदी के मत अनुसार उनकी माता का नाम बसी बाई था। और वह ब्राह्मणी थी लेकिन किववदंती कितनी प्रमाणिक है और किस समय से प्रचलित हुई है इसकी कोई जानकारी नहीं है।

11 वर्ष की अवस्था में दादू को भगवान ने वेद के रूप में दर्शन दिए और इन्हीं वेदों को दादू का गुरु माना जाता है। दादू जी की कई रचनाओं में कबीर जी का भी जिक्र है उन्होंने अपनी साखियों में जिक्र किया है कि बूढ़े बाबा के रूप में उन्हें कबीर जी मिले थे। जिन्हें उन्होंने अपना सत गुरु माना।  उनकी साखियां यह भी संकेत देती है कि कबीर नाम स्वयं परमात्मा का है जिनके नाम के सारे संसार सागर से पार हुआ जा सकता है। उन्होंने कबीर जी को ही सृजन हार कहा है अपनी प्रिये से प्रिय वस्तु तुरंत दे देने के स्वभाव के कारण उनका नाम दादू रखा गया था।

विक्रम संवत 1620 में 12 वर्ष की अवस्था में दादू जी ग्रह त्याग कर सत्संग के लिए निकल पड़े केवल प्रभु चिंता में ही ली हो गए। अहमदाबाद से प्रस्थान कर भ्रमण करते हुए राजस्थान की आबू पर्वतमाला तीर्थराजपुर पुष्कर से होते हुए  जिला जयपुर पधारे और पूरे 6 वर्षों तक लगातार प्रभु की साधना में लिन हो गए। संत दादू जी विक्रम संवत 1625 में सांभर पधारे याह उन्होंने मानव मानव के भेद को दूर करने वाले सच्चे मार्ग का उपदेश दिया। इस के बाद दादू जी महाराज आमेर पधारे तो वाह की सारी प्रजा और राजा उनके भक्त हो गए। उसके बाद में फतेहपुर सीकरी भी गए जहां पर बादशाह अकबर ने पूर्ण भक्त व भावना से दादू जी के दर्शन कर उनके सत्संग उपदेश ग्रहण करने की इच्छा प्रकट की तथा लगातार 40 दिन तक दादू जी से सत्संग करते हुए उपदेश ग्रहण किया सत्संग से प्रभावित होकर अकबर ने अपने साम्राज्य में गौ हत्याबंदी का फरमान लागू कर दिया श्री दादू जी दयाल महाराज के द्वारा स्थापित दादू पंथ दादू पीठ आज भी मानव मात्र की सेवा में है।

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