पाबूजी राठौड़ राजस्थान के प्रसिद्ध लोक देवता है। इनकी गिनती राजस्थान के पंच पीर में होते हैं। आज के इस लेख में हम पाबूजी के जीवन परिचय के बारे में जानेंगे और साथ ही पाबूजी के इतिहास के बारे में भी जानेंगे।
पाबूजी राठौड़ का जीवन परिचय | Pabuji rathore biography in hindi
- प्रतीक चिह्न – भाला लिया घुड़सवार
- वाहन – केशर कालमी घोड़ी
- गीत – परवाड़ा वाचना
- पुजारी – नायक जाति का
- मंदिर – कोलुमंड ( जोधपुर)
चैत्र अमावस्या के दिन कोलुमंड में पाबुजी की आराधना में मेला लगता है।
सब से लोकप्रिय फड़ पाबूजी की ही है।
पाबूजी महाराज को कई नाम से जाना जाता है इन्हें पाबूजी के उपनाम कहा जाता है। पाबूजी के उपनाम – लक्ष्मण के अवतार, ऊंटों के देवता, प्लेग रक्षक देवता, गायों के देवता
पाबूजी राठौड़ की शादी के समय उन्होंने अपना चौथा फेरा बीच में छोड़कर देवल चारणी की घोड़ी की रक्षा अपने जीजा जींदराव खींची से करी थी।
पाबूजी को लंकेरू सिंध पाकिस्तान से ऊंट लाने के श्रेय दिया जाता है। ऐसा माना जाता है की राजस्थान में सब से पहले ऊंट पाबूजी महाराज ही लाए थे।
पाबूजी राठौर के पवाड़े राइका या रेबारी जाति के लोग माठ या माठा वाद्य यंत्र बजाते हुए गाते हैं।
पाबूजी महाराज के भाई, बहन
ऐसा माना जाता है कि बापूजी महाराज तीन बहन भाई थे जिनमें से उनके बड़े भाई का नाम बुरोजी था। व इन की बहन का नाम पेमदे था। जब पाबूजी ने जींदराव खींची से युद्ध किया था तो पाबूजी की तरफ से उनके बड़े भाई भी युद्ध में लड़े थे।
पाबूजी की पत्नी
पाबूजी राठौड़ का विवाह अमरकोट (सिंध) के राजा सूरजमल सोढा की पुत्री फूलनदे ( सुप्यार दे ) के साथ हुआ था।
Pabuji maharaj history in hindi | पाबूजी महाराज का इतिहास
पाबू जी राठौड़ का जन्म 1239 ई. को कोलूमंड में हुआ इनके पिता का नाम था धांधली राठौर था। जब पाबूजी युवा हुए तो अमरकोट के सोडा राणा के यहां से सगाई का नारियल आया सगाई तय हो गई पाबूजी ने देवल नामक चारण देवी को बहन बनाया था देवल के पास एक बहुत ही सुंदर और सर्व गुण संपन्न घोड़ी थी जिसका नाम था केसर कालनी। देवल अपनी गायों की रखवाली इस घोड़ी से करती थी इस घोड़ी पर जींद राव खींची की भी नजर थी वह इस घोड़ी को प्राप्त करना चाहता था। जींद राव और पाबूजी में इस बात को लेकर मनमुटाव भी था विवाह के अवसर पर पाबूजी ने देवल से यह घोड़ी मांगी देवल ने जींद राव खींची की बात बताई तब पाबूजी राठौड़ ने कहा की आवश्यकता पड़ी तो वह अपना कार्य बीच में छोड़कर ही आ जाएंगे देवल ने घोड़ी उन्हें दे दी बारात अमरकोट पहुंची जिंदराव ने मौका देखा और देवल देवी की गाय चुरा कर ले भागा, पाबूजी जब शादी के फेरे ले रहे थे तब देवल के समाचार उन्हें मिले की जींद राव उनकी गाय लेकर भाग गया है समाचार मिलते ही वह अपने वचन के अनुसार शादी के फेरों को बीच में ही छोड़कर केसर कालणी घोड़ी पर बैठकर जींद राव का पीछा करते हैं पाबूजी राठौड़ ने दो ही फेरे लिए और जिस समय तीसरा फेरा चल रहा था ठीक उसी समय केसर कालणी घोड़ी झनझना उठी सारणी पर संकट का समाचार आ गया था ब्राह्मण कहता ही रह गया कि अभी तीन ही फेरे हुए हैं चौथ मेरा भी बाकी है पर कर्तव्य के मार्ग पर उस वीर पाबूजी राठौड़ को तो केवल कर्तव्य की पुकार ही सुनाई दे रही थी जिसे सुनकर वे चल दिए सुहागरात की इंद्रधनुष से सैया के लोभ को ठोकर मार कर रंगारंग के मध्य का अवसर पर निमंत्रण भरे इशारों की उपेक्षा कर कांकण डोरो को बिना खोले ही वह चल दिए और क्रोधित नारद जी के वीणा के तार की तरह झनझनाते हुए। केसर कालणी घोड़ी पर सवार होकर जींद राव खींची से देवल देवी की गाय छुड़वाकर उन्होंने अपने वचन का पालन किया किंतु पाबूजी महाराज वीर गति को प्राप्त हो गए इधर सोढ़ी राजकुमारी भी हाथ में नारियल लेकर अपने स्वर्गवास पति के साथ शेष फेरे पूरे करने के लिए अग्नि स्नान करके स्वर्ग पलायन कर गई।
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