मीरा बाई जीवन परिचय इन हिंदी
नाम | मीराबाई (Mirabai) |
जन्म | 1498 ई., कुड़की ग्राम, मेड़ता, मध्यकालीन राजपूताना (वर्तमान राजस्थान) |
माता | वीर कुमारी |
पिता | रतनसिंह राठौड़ |
पति | राणा भोजराज सिंह (मेवाड़ के महाराणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र) |
पुत्र | नहीं |
पुत्री | नहीं |
धर्म | हिन्दू |
वंश (विवाह के बाद) | सिसोदिया |
प्रसिद्धि का कारण | कृष्ण-भक्त, संत व गायिका |
मृत्यु | 1547 ईस्वी, रणछोड़ मंदिर डाकोर, द्वारिका (गुजरात) |
जीवनकाल | 48-49 वर्ष |
संप्रदाय – दासी संप्रदाय
उपनाम – राजस्थान की राधा , राजस्थान की रजिया
जन्म – 1492 ई. में कुड़की गांव में मेड़ता नागौर में। ( वर्तमान में कुड़की गांव पति जिले में आता है।
मीरा के दादा जी – राव दूदा
मीरा के पिता का नाम – रत्नसिंह
पति – भोजराज
मीरा का बचपन का नाम – पेमल दे
मां का नाम – वीर कुंवरी
भतीजा – वीर कल्लाजी
भाई – जयमल राठौड़ और आस सिंह
सहेली – ललिता
ससुर – राणा सांगा
देवर – विक्रमसिंह
मीरा के प्राराभिक गुरु का नाम – पण्डित गजादर
आध्यात्मिक गुरु – संत रैदास
भक्ति – सगुण या माधुर्य भाव
मीरा बाई को राजस्थान की राधा, राजस्थान की रजिया के नाम से जाना जाता है। इन का जन्म कुड़की गावं मेड़ता नागौर मे 1492 ई. हुआ था। मीरा बाई के पिता का नाम रत्न सिंह था। इन के दादा जी का नाम राव दुदा था। इन के बचपन का नाम पेमल दे और इन के पति का नाम भोजराज था। मां का नाम – वीर कुंवरी था। भतीजा – वीर कल्लाजी ,भाई – जयमल राठौड़ और आस सिंह, सहेली – ललिता, ससुर – राणा सांगा, देवर – विक्रमसिंह, मीरा के प्राराभिक गुरु का नाम – पण्डित गजादर, आध्यात्मिक गुरु – संत रैदास थे। मीरा बाई की भक्ति – सगुण या माधुर्य भाव की थी।
मीरा को सब से प्रमुख रचना पदावली थी।
मीर की मृत्यु द्वारिका रण छोड़ भट्ट के मंदिर में हुई थी।
मीरा का मुख्य मंदिर मेड़ता नागौर जिले में है।
अन्य मंदिर – चित्तौड़गढ़ दुर्ग में
मीरा बाई के प्रमुख ग्रंथ
- राधा गोविंद
- रुकमणी मंगल
- सत्यभासा
मीरा बाई के निर्देशन में रत्नाखाती ने नरसी जी रो मायरो नमक ग्रंथ ब्रज भाषा में लिखा था।
मीरा के पति भोजराज की मृत्यु खातौली के युद्ध में हुई थी। मीरा बाई के प्रमुख ग्रंथ राधा गोविंद, रुकमणी मंगल, सत्यभासा थे।
मीरा बाई के भाई – जयमल राठौड़ और आस सिंह
जयमल राठौड़ की मृत्यु चित्तौड़ के तीसरे साके मे युद्द लड़ते हुए हुई थी। चित्तौड़ का तीसरा साका 1568 ई. मे हुआ था। उस समय चितौड़ का राजा उदयसिंह था। और आक्रमण कारी अकबर था। इस युद्ध में घायल जयमल राठौड़ को वीर कल्लाजी में अपने कंधो पर बैठा कर युद्ध लड़ा था। इस युद्ध में जयमल राठौड़, कल्लाजी जी राठौड़, और फत्ता सिसौदिया लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।