कल्ला रायमलोत का जीवन परिचय
- पूरा नाम – कल्याण सिंह राठौड़
- पिता का नाम – राव अचल सिंह
- जन्म स्थान – मेड़ता
- अन्य नाम – दो सिर और चार हाथ वाले देवता
- चाचा का नाम – जयमाल राठौड़
- बुआ का नाम – मीरा बाई
राजस्थान के इतिहास में अनेक नाम अंकित है। जिन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों को न्योछावर किया उन्हें में से एक नाम है कल्याण सिंह राठौड़ का जो इतिहास में कल्ला जी राठौर के नाम से प्रसिद्ध हुए कल्लाजी राठौड़ का जन्म राजपूताना के मारवाड़ रियासत के मेड़ता में हुआ था उनके पिता का नाम राव अचल सिंह था व श्री कृष्ण की परम भक्त मीरा बाई इन की बुआ थी। कला राठौड़ बचपन से ही तलवार चलाने में निपुण थे जब कल्ला राठौड़ 22 साल के हुए तब अकबर ने मेड़ता पर आक्रमण कर दिया था। मेड़ता के राव जयमाल राठौड़ उनके भाई अचल सिंह और कला राठौड़ सभी ने बहादुरी से मुगलों से युद्ध किया का रतु और कल्ला राठौड़ ने वीरता से युद्ध किया परंतु अकबर की विशाल सेना के आगे वह हार गए परंतु जयमल राठौड़ और कल्ला राठौड़ ने अकबर की अधीनता स्वीकार करना उचित नहीं समझा और मेड़ता छोड़कर चित्तौड़ में राणा उदय सिंह की सेवा में चले गए राणा उदय सिंह ने दोनों वीरों का मेवाड़ में स्वागत किया और जयमल राठौड़ को बदनोर और कल्ला राठौड़ को रंडाल की जागीर प्रधान की, पूरी निष्ठा के साथ कल्ला राठौड़ ने राणा उदय सिंह की सेवा की। 1567 में अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया। आक्रमण की खबर सुनते ही कल्ला राठौड़ रंडोल से निकल कर चित्तौड़ राणा उदय की सेवा में हाजिर हुए। मुगल सेना के मुकाबले चित्तौड़ की सेना काफी कम थी और हार निश्चित थी इसलिए मेवाड़ के सामंतों ने राणा उदय सिंह से युद्ध न लड़ने के आग्रह किया। सामंतो के आग्रह पर राणा उदय सिंह अपने परिवार के साथ चित्तौड़ छोड़कर उदयपुर चले गए और चित्तौड़ की सुरक्षा की जिम्मेदार जयमल राठौड़ की दी। जयमल राठौड़ के साथ फत्ता सिसोदिया, वीर कल्ला राठौड़ भी थे और 8000 सैनिक भी। अक्टूबर 1568 में अकबर सेना के साथ चित्तौड़ पहुंचा और किले को घेर लिया। उसने किले की तरफ तोप चालावाना शुरू कर दिया तोप के गोले से किले के दीवार में क्षति होने लगी दीवार का जो हिस्सा क्षतिग्रस्त हो जाता था उसे राजपूत सैनिक रात को मरम्मत करवा देते थे ऐसे ही एक रात जयमाल राठौड़ मरम्मत कार्य का निरीक्षण कर रहे थे तभी अकबर की नजर उन पर पड़ी अकबर ने उन पर गोली चलावा दी जिस से वह गोली जयमल के पैरों पर लगी थी जिसके कारण उनका पैर काम करना बंद कर दिया राजपूतो ने निर्णय लिया कि अब वह मुगल सेना से सीधी टक्कर लेंगे। 23 फरवरी 1568 में जोहर किया गया 24 फरवरी 1568 को किले के दरवाजे खोल दिए राजपुत सैनिक केसरिया वस्त्र धारण कर अंतिम युद्ध पर निकल पड़े गोली लगने के कारण जयमल चल नहीं सकते थे वह काफी निराश हो गए उन्हें निराशा देख कल्ला जी राठौड़ ने उनसे कहा काका आप निराश मत होइए आप मेरे कंधों पर बैठकर युद्ध करिए जयमल जी कल्ला जी के कंधों पर बैठ गए और अपने दोनों हाथो में तलवार ले ली और साथ में कल्ला जी राठौड़ ने भी अपने दोनो हाथो में तलवार ले ली और मुगलों पर टूट पड़े जो भी सामने आया उसे मौत की नींद सुला दिया यह भयानक दृश्य देख मुगलों के होश उड़ गए मुगल सैनिक डर के भागने लगे वह कहने लगे मेवाड़ की सेना की तरफ से कोई चार हाथों वाला देवता लड़ रहा है तभी से कल्लाजी राठौड़ को चार हाथों वाला देवता कहा जाता है लड़ते-लड़ते जयमल जी बुरी तरह घायल हो गए कल्ला राठौड़ ने भैरव पोल के पास उन्हें कंधे से उतारकर वहां बैठा दिया और युद्ध करने लगे कल्ला राठौड़ शेर के समान लड़ रहे थे। मुगल समझ चुके थे की अगर ऐसा ही चलता रहा तो यह अकेले ही हमारी सेना को खत्म कर देगा। इसलिए कई सारे मुगल सैनिक एक साथ कल्ला राठौड़ पर टूट पड़े कल्ला राठौड़ ने वीरता पूर्वक सभी का सामना किया लेकिन तभी एक मुगल सैनिक पीछे से आकर कल्ला राठौड़ का सिर काट दिया और कला राठौड़ वीरगति को प्राप्त कर गए
कल्ला जी राठौड़ का युद्ध इतिहास
हिंदुस्तान की मातृभूमि की रक्षा के लिए अनेक वीरों ने बलिदान दिया जिसमें से एक थे कला राठौड़ और जयमल राठौड़ जिनके बहादुरी का किस्सा पढ़कर आप के रोंगटे खड़े हो जाएंगे। इस लेख को अंत तक पढ़ना मेरे दोस्तो क्योंकि इन वीरों का नाम इतिहास के पन्नों में कभी दिखाई नहीं देता है। कला राठौड़ और जयमल राठौड़ यह दोनों काका और भतीजे के नाम से भी प्रसिद्ध है जब अकबर की सेना ने चित्तौड़गढ़ को चारों ओर से घेर लिया था और अकबर की मुगल सेना से लड़ने के लिए मेवाड़ी वीर किले से बाहर निकल कर हमला करते और शत्रु को हानि पहुंचाकर फिर किले के अंदर जाते क्योंकि किले को चारों ओर से मुगल सेना ने घेर लिया था यह कई दिनों तक संघर्ष चलता रहा क्षत्रिय राजपूत की संख्या बहुत कम होने लगी थी तब सेनापति जयमाल ने यह निश्चय किया की हम अंतिम सांस तक युद्ध लड़ेंगे। और फिर एक बार राजपूतो और मुगलों के बीच बहुत बड़ा युद्ध हुआ जिसमें सेनापति जयमल राठौड़ के पांव में गोली लगने की वजह से वह बहुत घायल हो गए युद्ध करने की उनकी तीव्र इच्छा थी लेकिन उन से खड़ा भी नहीं हो जा रहा था कल्ला जी ने यह देख कर जयमल के दोनो हाथो मे दो तलवारे दे दी और उन्होंने उसे अपने कंधों के ऊपर बैठा लिया इसके बाद चारों हाथों की तलवारे बिजली से भी तेज चलने लगी और मुगल सेना की लाशे किले के चारों और बिखरने लगी बहुत समय तक युद्ध लड़ने की वजह से कल्ला जी और जयमल दोनों पूरी तरह से घायल हो गए थे लेकिन फिर भी वह अपनी मिट्टी के लिए पूरे साहस से लड़ रहे थे लेकिन तभी अचानक मुगलों के सेनापति ने पीछे से हमला करके उन दोनों का सिर काट दिया इतिहासकारों के मुताबिक उनका सिर काटने के बाद भी उनका धड़ मुगलों से लड़ता रहा इसके बाद कल्ला जी और जयमल दो सिर और चार हाथ वाले देवता के रूप में प्रसिद्ध होने लगे। यह सब गतिविधि देख कर अकबर हैरान हो गया था। अकबर ने सोचा कि भगवान चतुर्भुज इनका साथ दे रहे है। अंत में अकबर ने उनकी वीरता से प्रभावित होकर कल्ला जी और जयमल की मूर्तियां आगरा के किले पर लगवाई और कल्लाजी रणबंका राठौड़ के नाम से प्रसिद्ध होने लगे चित्तौड़गढ़ के भैरव पोल पर उनकी छवि अभी बनी हुई है ऐसे वीर योद्धा कल्लाजी और जयमल राठौड़ के अद्भुत साहस और पराक्रम के बारे में आप क्या कहेंगे हमें कमेंट करके जरूर बताइएगा और ऐसे लेख पढ़ना आपको पसंद है तो जाते-जाते इस लेख को अपने दोस्तो के साथ भी शेयर करे।