Karni Mata – करणी माता का इतिहास | करणी माता का जीवन परिचय

नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका Hindidukan.in में आज आपको मैं करणी माता के इतिहास के बारे में बताने जा रहा हूं करणी माता का मंदिर राजस्थान के बीकानेर शहर से लगभग 33 किलोमीटर दूर देशनोक में स्थित है। बीकानेर जोधपुर रेल मार्ग पर छोटा रेलवे स्टेशन है देश-विदेश के श्रद्धालु करणी माता के दर्शन कर मनोवांछित फल पाने के लिए देशनोक आते है। करणी माता बीकानेर के राठौड़ राजवंश की कुलदेवी के रूप में पूजी जाती है। राव बीका द्वारा बीकानेर राज्य की स्थापना व विस्तार और विकास में करणी माता की कृपा मुख्य कारण रही है।

  • नाम – करणी माता
  • पिता का नाम – मेहाजी चारण
  • छोटी बहन – गुलाब

 

करणी माता का जन्म व विवाह

मेहाजी चारण की छठी पुत्री के रूप में 1444 में आश्विन शुक्ल सप्तमी यानी 20 सितंबर 1387 के दिन हुआ था। उनका विवाह साटिका ग्राम के निवासी दीपो जी के साथ हुआ पर वह वैवाहिक जीवन से विरक्त रही उनकी प्रेरणा से दीपो जी का विवाह उनकी छोटी बहन गुलाब के साथ हुआ। करण जी ने छोटी बहन के चारों पुत्रों को पुत्रवत माना व चारों पुत्र बारी-बारी एक एक मास तक करणी माता की सेवा में रहते थे बाद में वही करण  माता के मंदिर के पुजारी बने। इन्ही के वंशज बारी बारी मंदिर में पूजा करते हैं।

करनी माता का देहावसान

करणी माता द्वारा चैत्र शुक्ल नवमी 1595 यानी 23 मार्च 1538 को 151 वर्ष की आयु में लौकिक शरीर त्याग दिया था। 
 

करणी माता के मंदिर का विकाश 

चैत्र शुक्ल चतुर्दशी को देशनोक के इसी गुम्बारे में उनकी प्रतिमा स्थापित की गई जिसमें वह निवास किया करती थी उस गुंबारे का निर्माण उन्होंने अपने हाथों से किया था कालांतर में उसी गुम्बारे के ऊपर मंदिर बना जिस का  विकास होता रहा करणी माता के मंदिर का विकास सर्वप्रथम बीकानेर नरेश राव जेतसी ने गुम्बारे के ऊपर कच्ची ईटो से मंदिर का निर्माण करवाया था। उन्होंने करणी माता की कृपा से बाबर के पुत्र कामरान पर विजय प्राप्त की थी इसी विजय की उपलक्ष में निर्माण कार्य करवाया गया। इस के बाद सूरज सिंह ने माता की कृपा से मराठों पर विजय प्राप्त की उन्होंने राव जेतसी द्वारा करवाए गए निर्माण के स्थान पर पक्का निर्माण करवाया। बीकानेर नरेश गंगा सिंह के शासनकाल में सेठ चांदमल ने सफेद संगमरमर के भव्य कलात्मक द्वार का निर्माण करवाया। इस प्रकार करणी माता का वर्तमान मंदिर स्वयं करणी माता द्वारा अपने आवास हेतु निर्मित गुम्बारे का विकसित रूप है। 
 

अंधे बन्ना खाती ने बनाई करणी माता की प्रतिमा

गुम्बारे में स्थापित करणी माता की मूर्ति का निर्माण जैसलमेर के बन्ना खाती द्वारा किया गया था। यह मूर्ति जैसलमेरी पत्थर से निर्मित है बन्ना खाती अंधा हो गया था उसे करणी माता ने दृष्टि प्रदान कर दर्शन दिए बन्ना ने माता का जिस रूप में दर्शन किया उसी रूप को पत्थर पर उत्प्रण कर दिया मूर्ति में करणी माता के चेहरे पर सौम्य मुस्कान है नेत्र मुद्रित है सर पर मुकुट छत्र बना हुआ है गले में हार और ज्वेलरी मोतियों की माला है हाथों में भुज बंद और चूड़ा है पैरों में पायल और कमर में करधनी है कांजली व दाबलिया अवस्था धारण किए हुए है। दाहिने हाथ में त्रिशूल है जिसके नीचे महिषासुर का सिर है बाएं हाथ में नरमुंडकी की चोटी पकड़े हुए हैं करणी माता की मूर्ति के बिल्कुल पास में काला और गोरा भैरव है दाहिनी तरफ करणी माता की पांच बहनों की मूर्तिया है। 
 

करणी माता की आरती व चिरजा 

मंदिर में प्रतिदिन होने वाली आरती के अतिरिक्त प्रत्येक मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को विशेष पूजा व भोग आरती होती है तथा जागरण होता है जागरण में माता जी का गुणगान होता है जिसे चिरजा कहते हैं। 
 

चूहों वाली माता करणी माता

इस मंदिर की विशेषता यह है की सोचंद विचरण करते हुए चूहे हैं उन्हें काबा कहा जाता है इस विषय में रघुनाथ प्रसाद तिवारी अपनी पुस्तक “हमारी कुलदेवियों” में लिखते हैं।  माताजी के मंदिर में काबे बहुत सारे हैं जो सर्वत्र मंदिर भर में स्वतंत्रता पूर्वक विचरण करते हैं उनकी अधिकता के मारे दर्शन्नार्थियों को बहुत बच बचकर मंदिर में चलना पड़ता है। जिससे वह दबकर मर ना जाए कहते हैं देवी जी के वंशज चारण लोग ही मरने पर काबा हुआ करते हैं और फिर काबे से चारण होते हैं यमराज पर क्रोधित होने के कारण ही उन्होंने अपने वंशजों के लिए ऐसा प्रबंध किया था। यही कारण है कि लोग इन्हें भी आधार की दृष्टि से देखते हैं और श्रद्धा अनुसार दूध मिठाई आदि खिलाया करते हैं इन चूहों के कारण लोग इन्हें चूहों वाली माता भी कहते हैं इन चूहों के बीच कभी-कभी सफेद चूहे के रूप में घूमती देवी जी भी भक्तो को दर्शन दिया करती है यह काबा मंदिर की मर्यादा से मर्यादित है यह मुख्य द्वार से बाहर नहीं जाते हैं। 

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