देवनारायण जी का जीवन परिचय
परिचय बिंदु | परिचय |
पूरा नाम (Full Name) | देवनारायण गुर्जर जी |
अन्य नाम (Other Name) | उदयसिंह, देव |
पेशा (Profession) | लोक देवता |
हथियार (Weapons) | तलवार एवं भाला |
जन्म (Birth) | 1243 ई. (माघ महीने की शुक्ला पक्ष की छठ) |
जन्म स्थान (Birth Place) | मालासेरी |
निवास क्षेत्र (Residencial Place) | राजस्थान, उत्तरप्रदेश ओर मध्यप्रदेश |
त्यौहार (Festival) | देवनारायण जयंती, मकर सक्रांति एवं देव एकादशी |
जाति (Caste) | गुर्जर जाति |
पिता का नाम (Father’s Name) | राजा भोज (सवाई भोज) (वीर भोजा) |
माता का नाम (Mother’s Name) | साढू खटानी |
पत्नी का नाम (Wife’s Name) | रानी पीपलदे |
देवनारायण जी की कहानी व इतिहास
देवनारायण जी राजस्थान के एक लोक देवता, शासन और महान योद्धा थे। उनकी पूजा मुख्यतः राजस्थान हरियाणा तथा मध्य प्रदेश में होती है। इनका भव्य मंदिर आसीन में है उनका जन्म एक लोकप्रिय मंडल जी गुर्जर के परिवार में हुआ था जिन्होंने मेवाड़ में भीलवाड़ा जिले के पास प्रसिद्ध मंडल झील की स्थापना की थी। मंडल जी अजमेर के राजा विशाल देव गुर्जर के भाई थे जिन्होंने संभव तह आठवीं शताब्दी में अजमेर पर शासन किया था।
साथ ही साथ अरब घुसपैठियों का सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया और तोमर वंश की शासको को दिल्ली पर नियंत्रण पाने में मदद की श्री देवनारायण जी का मूल स्थान वर्तमान में अजमेर के निकट नाग पहाड़ था। राजस्थान में प्रचलित लोक कथाओं के माध्यम से शौर्य पुरुष देवनारायण जी के संबंध में विस्तृत रूप से जानकारी मिलती है देवनारायण जी की फड़ के अनुसार मंडल जी के हरिराम जी गुर्जर हरिराम जी के बाग जी और बाग जी के 24 पुत्र हुए जो बगड़ावत कहलाए इन्हीं में से बड़े भाई राजा सवाई भोज गुर्जर और माता साढू खटानी के पुत्र के रूप में विक्रम संवत 968 में माघ शुक्ल सप्तमी को अलौकिक पुरुष श्री देवनारायण जी का जन्म मालासेरी में हुआ था रानी जयमती को लेकर राण के राजा दुर्जन साल से बगड़ावतों का युद्ध हुआ युद्ध से पूर्व बगड़ावत तथा दुर्जन साल की मित्रता थी तथा वह धर्म के भाई थे यह युद्ध खारी नदी के किनारे हुआ था। बगड़ावतो ने अपना वचन रखते रानी जय मति को अपना सिर दान में दिए थे।
बगड़ावतो के वीरगति को प्राप्त करने के बाद श्री देवनारायण जी का अवतार हुआ तथा उन्होंने राजा दुर्जन साल का वध किया देवनारायण जी की तीन रानियां थी पीपल दे परमार नागकन्या तथा दैत्य कन्या श्री देवनारायण की पराक्रमी योद्धा थे जिन्होंने अत्याचारी शासको के विरुद्ध कई संघर्ष एवं युद्ध किए वह शासन भी रहे उन्होंने अनेक सिद्धि दिया प्राप्त की चमत्कारों के आधार पर धीरे-धीरे में देव स्वरूप बनत गए एवं अपने इष्ट देव के रूप में पूजे जाने लगे देवनारायण जी को विष्णु भगवान के अवतार के रूप में गुर्जर समाज द्वारा राजस्थान व दक्षिण पश्चिम मध्य प्रदेश में अपने लोक देवता के रूप में पूजा की जाती है उन्होंने लोगों के दुख व कष्टों का निवारण किया देवनारायण जी महागाथा में बगड़ावत और राण बिनाये के शासको के बीच युद्ध का रोचक वर्णन है देवनारायण जी का अंतिम समय ब्यावर तहसील के मसूदा से 6 किलोमीटर दूरी पर स्थित देह माली स्थान पर गुजरा भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को उनका वही देवसान हुआ
देवनारायण जी से पीपल दे द्वारा संतान विहीन छोड़कर ना जाने के आग्रह पर बैकुंठ जाने से पूर्व पीपल्दे से एक पुत्र बिला व पुत्री बिली उत्पन्न हुई उनका पुत्र ही उनका प्रथम पुजारी हुआ भगवान कृष्ण की तरह देवनारायण जी भी गायों के रक्षक थे। उन्होंने बगड़ावतों की पांच गाय खोजी जिम में सामान्य गायों से अलग विशेष लक्षण थे। देवनारायण की प्रातः काल उठते ही सरेमाता गाय के दर्शन करते थे यह गाय बगड़ावतों के गुरु रूपनाथ ने सवाई भोज को दी थी देवनारायण जी के पास 98000 पशुधन था जब देवनारायण जी की गाय राण बिनायका राणा घेर कर ले जाता तो देवनारायण जी गायों की रक्षा के लिए राणा से युद्ध करते हैं और गायों को छुड़ाकर लाते थे देवनारायण की सेना में ग्वाले अधिक थे 1444 ग्वालो का होना बताया गया है जिनका काम गायों को चराना और गायों की रक्षा करना था। देवनारायण जी ने अपने अनुयायियों को गायों की रक्षा करने का संदेश दिया उन्होंने जीवन में बुराइयों से लड़कर अच्छाइयों को जन्म दिया आतंकवाद से संघर्ष कर सच्चाई की रक्षा की एवं शांति स्थापित की हर असहाय की रक्षा की राजस्थान में जगह-जगह उनके अनुयायियों ने देवालय अलग-अलग स्थानो पर बनवाए हैं जिनको देवरा भी कहा जाता है यह देवरे अजमेर चित्तौड़ भीलवाड़ा व टोक में काफी संख्या में है देवनारायण जी का प्रमुख मंदिर भीलवाड़ा जिले में आसींद कस्बे के निकट खारी नदी तट पर महाराजा सवाई भोज में स्थित है।
देवनारायण जी का एक प्रमुख देवालय निवाई तहसील के जोधपुरिया गांव में वनस्थली से 9 किलोमीटर की दूरी पर है संपूर्ण भारत में गुर्जर समाज का यह सर्वाधिक पौराणिक तीर्थ स्थल है देवनारायण जी की पूजा भोपाओ द्वारा की जाती है यह भोपा विभिन्न स्थानों पर जाकर लपेटे हुए कपड़े पर देवनारायण जी की चित्रित कथा के माध्यम से देवनारायण जी की गाथा गाकर सुनाते हैं देवनारायण जी की फड़ में 335 गीत है जिनका लगभग 1200 प्रष्टो में संग्रह किया गया है एवं लगभग 15000 पंक्तियां है यह गीत परंपरागत भॊपाओं को कंठस्थ रहते हैं देवनारायण जी की फड़ राजस्थान की फड़ो में सर्वाधिक लोकप्रिय एवं सबसे बड़ी है।
Last Word:-
तो दोस्तों यह था श्री देवनारायण जी का शानदार इतिहास दोस्तों श्री देवनारायण जी के बारे में अपनी राय तथा कमेंट बॉक्स में श्री देवनारायण जी की जय लिख कर कमेंट जरुर करें दोस्तों इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करे।